राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी का साहित्यिक परिचय
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म उत्तर प्रदेश के चिरगांव जिला झांसी में 3 अगस्त 1886 ई.को हुआ था। इनके पिता का नाम राम प्रसाद कनकने था।और माता कौशल्या बाई थी। इनके माता पिता वैष्णव थे। दोनों विष्णु भगवान के परम भक्त थे। गुप्त जी पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इनके पिता भी कविता करते थे।इस कारण घर का वातावरण साहित्यिक था।और गुप्त जी की भी रूचि बचपन से ही साहित्य के प्रति थी। खेलकूद में अधिक झुकाव के कारण स्कूली शिक्षा छूट गई और फिर इन्होंने घर पर ही हिन्दी संस्कृत का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी इनके गुरु थे। जब ये 12 वर्ष के थे तभी ब्रजभाषा में कविता लिखकर साहित्य लेखन की शुरुआत की।
इनकी आरंभिक कविताएं वैश्योपकारक पत्रिका में प्रकाशित होती थी।इसी बीच वे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आए और उन्हें अपना काव्य गुरु बना लिया।और उनसे प्रभावित होकर खड़ी बोली में कविताएं करने लगे। खड़ी बोली की इनकी पहली कविता 'हेमन्त' 1905 ई. में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। गुप्त जी का पहला काव्य ग्रंथ 'रंग में भंग' है जिसका प्रकाशन 1909 ई. में हुआ था।
गुप्त जी महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे। उनके प्रभाव से उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और जेल भी गए। गुप्त जी की राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत कविताओं के कारण महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्र कवि की उपाधि से सम्मानित किया। लोग उन्हें प्रेम से दद्दा कहते थे। 1954 ई. में उन्हें राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया। सियाराम शरण गुप्त इनके अनुज थे।
गुप्त जी का रचना संसार अत्यंत विशाल है :-
अपने जीवनकाल में इन्होंने दो महाकाव्य साकेत 1931 ई. और जयभारत 1952 ई. की रचना की। इन्होंने छोटे बड़े अनेक खण्डकाव्य , गीतिकाव्य , मुक्तक , संस्मरणात्मक लेख इत्यादि की रचना की। गुप्त जी की प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं:-
रंग में भंग , जयद्रथ वध , भारत भारती , तिलोत्तमा ,
चंद्रहास , किसान , वैतालिक , पत्रावली , शकुंतला , लीला , पंचवटी , आर्य , हिन्दू , त्रिपथगा ,वक संहार , विकट भट , वन वैभव , सैरन्ध्री , गुरुकुल , झंकार , साकेत ,यशोधरा ,उच्छ्वास ,सिद्धराज ,मंगलघट ,
नहुष , कुणालगीत ,अर्जन और विसर्जन , विश्व वेदना , काबा और कर्बला ,प्रदक्षिणा , पृथ्वीपुत्र ,
हिडिम्बा , अंजलि और अर्ध्य , जयभारत ,विष्णुप्रिया , रत्नावली , स्वस्ति और संकेत इत्यादि।
गुप्त जी की प्रसिद्धि इनके काव्य ग्रंथ भारत भारती से हुई जिसका प्रकाशन 1912 ई. में हुआ था। भारत भारती ने जनमानस में अपने देश और जाति के प्रति गौरव और राष्ट्र प्रेम की भावनाएं जागृत की।इसी रचना के कारण महात्मा गांधी ने गुप्त जी को राष्ट्र कवि कहकर संबोधित किया। भारत भारती लिखने की प्रेरणा गुप्त जी को मुसद्दसे हाली और ब्रजमोहन दत्तात्रेय कैफ़ी कृत भारत दर्पण से मिली।
साकेत महाकाव्य गुप्त जी की प्रसिद्धि का मूलाधार है। यह रामचरितमानस के बाद रामकथा परम्परा का दूसरा महाकाव्य है। गुप्त जी ने इसमें उर्मिला के विरह वेदना का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है।इस महाकाव्य को लिखने की प्रेरणा गुप्त जी को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के लेख 'कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता' और रविंद्र नाथ टैगोर की 'काव्येर उपेक्षिता' लेख से मिली। साकेत का प्रकाशन 1931 ई. में हुआ था और इस पर 1936 ई. में गुप्त जी को मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी प्राप्त हुआ था।
इनकी साहित्य साधना के लिए 1958 ई.में इन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने डी. लिट. की मानद उपाधि से विभूषित किया।1954 ई.में भारत सरकार ने इन्हें 'पद्म भूषण' सम्मान से सम्मानित किया । 12 दिसम्बर 1964 ई. में स्वास्थ्य बिगड़ने से यह देदीप्यमान सितारा चिराकाश में सदैव के लिए विलीन हो गया।
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