जैनेन्द्र की मनोवैज्ञानिक कहानियां

           जैनेन्द्र हिन्दी साहित्य में प्रथम मनोवैज्ञानिक कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित है। प्रेमचंद के बाद कथा साहित्य को एक नयी दिशा देने वाले जैनेन्द्र ही हैं। इन्होंने डेढ़ सौ से अधिक कहानियां लिखी हैं। जिसमें बाहरी सौंदर्य के साथ मानसिक परिवेश की प्रधानता अधिक है।इन कहानियों में ये व्यक्ति की उलझनों और गुत्थियों को सुलझाते हुए दिखाई देते हैं।मानव मन का सूक्ष्म विश्लेषण, परत दर परत उसकी गांठें खोलना जैनेन्द्र जी की विशेषता है। इनकी कहानियां सामाजिक विषयों पर मुक्ति की चर्चा नहीं करती बल्कि मनोवैज्ञानिक तरीके से मानव मन की व्याख्या करती है।ये पाठकों की उंगली पकड़ कर मंजिल तक नहीं चलते बल्कि उन्हें मंजिल तक का रास्ता सूझाते हैं  डाॅ इन्द्रनाथ मदान के शब्दों में - " इनके लिए सामूहिक मुक्ति या सामाजिक मुक्ति का प्रश्न ही नहीं उठता।इस मूल समस्या को , एकाकीपन की समस्या को प्राय: प्रेम तथा विवाह के माध्यम से उठाया गया है।"
        जैनेन्द्र से पूर्व की कहानियां सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत करतीं थीं परन्तु जैनेन्द्र की कहानियां व्यक्ति मन के यथार्थ को प्रस्तुत करतीं हैं।व्यक्ति , उसकी भावनाएं , समस्याएं , व्यक्ति के मन की गांठों का विश्लेषण , अहं की भावना , आत्मपीड़ा , घुटन , यौन संबंध में सभी जैनेन्द्र के कथा साहित्य में प्रमुखता के साथ मुखरित हुआ है। वस्तुत: ये अपनी कहानियों में कथा शिल्प से ज्यादा मानव मन की सैर करते हैं। इनकी पहली कहानी खेल 1928 ई. में विशाल भारत पत्रिका में प्रकाशित  हुई थी। यह बाल मनोविज्ञान से संबंधित कहानी है। जिसमें बाल सुलभ चेष्टाओं , क्रीड़ाओं परस्पर रूठने मनाने एवं स्नेह की प्रवृति देखी जा सकती है। यहीं से इनके कथा साहित्य की शुरुआत होती है। इनके प्रमुख कथासंग्रह और उसमें संग्रहित कहानियां इस प्रकार है:-
फांसी (1929) : फांसी , स्पर्द्धा , गदर।

वातायन (1931): फोटोग्राफी , खेल , चोरी , अपना अपना भाग्य , अंधे का भेद , दिल्ली में , आतिथ्य , ब्याह , निर्मम , साधु की हठ , दलित चित्रण , तमाशा , भाभी ।

दो चिड़िया (1934): दो चिड़िया , आम का पेड़ , कश्मीर , प्रवास के दो अनुभव , रुकिया  बुढ़िया , हत्या , पढ़ाई , एक दिन , वे तीन ।

एक रात (1935): एक रात , एक मास्टर जी , रानी महामाया , राजीव और भाभी , नारद का अर्ध्य , बाहुबली , वह बिचारा सांप , अपना पराया , बिल्ली बच्चा , राज पथिक , मौत की कहानी , जनता , एक टाइप , मित्र विद्याधर , रामू की दादी , पढ़ाई , आलोचक , नादिरा , क्या हो ?

नीलम देश की राजकन्या और कहानियां (1938): दृष्टि दोष , कुछ उलझन , विस्मृति परदेशी , पत्नी त्रिवेणी , जाह्नवी , एक गौ , चिड़िया की बच्ची , रेल में , ग्रामोफोन का रिकार्ड , पानवाला , संबोधन , दुर्घटना , एक कैदी , भूत की कहानी , गंवार ,क: पंथा , व्यर्थ प्रयत्न , इक्के में , कहानीकार , नीलम देश की राजकन्या , देवी देवता , अनबन , हवा महल ।

ध्रुवयात्रा (1944): उर्वशी , किसका रूपया , चालीस रूपये , जयसंधि , ध्रुवयात्रा , परावर्तन , पूर्ववृत्त , बीडट्रिस , रत्नप्रभा।

पाज़ेब (1948): अकेला , चोर तो लाए , निस्तार , पाज़ेब , प्रतिमा , सजा , समाप्ति , सोद्देश्य ।

        जैनेन्द्र की 'पाज़ेब' एक पारिवारिक कहानी है जिसमें बालमन की सरलता , निष्कपटता और भोलेपन को दर्शाया गया है। पाज़ेब के चोरी हो जाने पर जिस प्रकार चोरी का शक बच्चे पर किया जाता है और इस स्थिति में बालमन की दशा का वर्णन और फिर पाज़ेब का घर में ही मिल जाना मानव मन की परतें खोल देता है।इसी तरह 'तमाशा' भी बालमन को व्यक्त करती कहानी है। जिसमें बाल संवेदना और उसके व्यवहारों तथा उस पर माता पिता की प्रतिक्रियाओं का वर्णन किया गया है। 'अपना अपना भाग्य ' कहानी की पृष्ठभूमि सामाजिक विषमता है। इसमें एक गरीब पहाड़ी बच्चे की कहानी है।जिसकी ठंड़ के कारण अंततः मृत्यु हो जाती है। 'एक रात की कहानी ' ऐसे क्रांतिकारी युवक की मन: दशा को व्यक्त करती हैं जिसे सुबह फांसी की सजा होने वाली है।
       इन कहानियों से स्पष्ट है कि जैनेन्द्र की कहानियां मानव मन के भावों को परत दर परत खोलते हुए चलती हैं। जैनेन्द्र ने कथा साहित्य को मानव मन से जोड़ने का महान कार्य  किया है। इनके पहले तक की कहानियों में प्रेमचंद सामाजिक यथार्थ  की कहानियां लिखकर जनता को समाज की सच्चाइयों से परिचित करा रहे थे। जैनेन्द्र जी ने उनसे अलग हटकर कथा साहित्य  को एक नया मोड़ देकर जनता को मानवीय भावों के उतार चढ़ाव , अन्तर्द्वन्द्वों , मानसिक गांठों से परिचित कराया। निश्चित ही यह कथा साहित्य के लिए जैनेन्द्र जी की अनुपम देन है।

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