धारावाहिक लेखक मनोहर श्याम जोशी

       मनोहर श्याम जोशी हिन्दी के सुप्रसिद्ध उपन्यास कार , व्यंग्य लेखक , पत्रकार , दूरदर्शन धारावाहिक लेखक , जनवादी विचारक , फिल्म पटकथा लेखक , संपादक , कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ लेखक थे। इनका जन्म 9अगस्त 1933 ई. को राजस्थान के अजमेर के एक प्रतिष्ठित एवं सुशिक्षित परिवार में हुआ था। परिवार में शैक्षिक वातावरण था जिसके परिणामस्वरूप इनमें विद्याध्ययन तथा संचार साधनों के प्रति जिज्ञासा का भाव विद्यमान था। जो आगे चलकर इनके व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध हुआ।
           लखनऊ विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई करते समय ही इन्होंने ' इलेक्ट्रॉन का रोमांस ' नामक लेख लिखा। फिर वहीं से अमृतलाल नागर के प्रभाव से कहानी विधा से लेखन की शुरुआत की। बाद में जब ये पत्रकार बनने के लिए दिल्ली आए तो अज्ञेय जी के सम्पर्क में आकर कविता लिखने लगे। अज्ञेय जी तीसरा सप्तक में जोशी जी को शामिल करना चाहते थे परन्तु समय पर कविता न मिल पाने के कारण वंचित रह गए। जोशी जी कूर्मांचली नाम से कविता करते थे। मरणोपरांत इनकी कविताओं का संग्रह "कूर्मांचली की कविताएं " शीर्षक से प्रकाशित हुआ। जोशी जी दूरदर्शन के धारावाहिकों के भीष्म पितामह थे।देश में सोप आॅपेरा लिखने वाले जोशी जी पहले लेखक थे। इनकै प्रमुख धारावाहिक है :- हमलोग , बुनियाद , कक्का जी कहिन , मुंगेरी लाल के हसीन सपने , हमराही , ज़मीं आसमां , गाथा। इन्होंने हे राम , पापा कहते हैं , अप्पू राजा और भ्रष्टाचार जैसी फिल्मों के लिए पट कथा लेखन का कार्य भी किया।
       इनका हमलोग धारावाहिक उस समय प्रारम्भ हुआ जब संयुक्त परिवारों के टूटने का चलन झकस्बों और छोटे शहरों में भी शुरू हो चुका था । जोशी जी ने हमलोग के माध्यम से लोगों के बीच ऐसा परिवार लाकर खड़ा कर दिया जिसने टूटते परिवार को समाज और संस्कार से जोड़ने का काम किया। इसके बाद भारत विभाजन की कथा को केन्द्र बनाकर उन्होंने एक और धारावाहिक बुनियाद लिखा। जिसके कारण उनकी लोकप्रियता सरहद के उस पार तक पहुंच गई। उनके धारावाहिकों में एक प्रकार का संदेश होता था जो लोगों को समाज और संस्कार से जोड़े रखता था।
            जोशी जी का पहला उपन्यास 'कुरू कुरू स्वाहा' सन् 1981 ई. में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने कसप , हरिया हरक्युलिस की हैरानी , टा टा प्रोफेसर , कौन हूं मैं , कपीश जी , हमजाद और क्याप जैसे प्रसिद्ध उपन्यास लिखें। कुरू कुरू स्वाहा उपन्यास में लेखक ने अपने व्यक्तित्व को त्रिस्तरीय भागों में बांटकर विकसित किया है- मनोहर , श्याम जोशी। इसमें पहुंचेली जैसी एक अबूझ नायिका भी है।कसप हिन्दी के बेहतरीन प्रेम उपन्यासों में से एक है। हमजाद हिन्दी का अकेला ऐसा उपन्यास है जिसके कथा के केन्द्र में बुराई को रखा गया है।क्याप उनके जीवन काल का अंतिम उपन्यास है जिस पर उन्हें 2005 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।
       भाषा पर तो इनका जबरदस्त अधिकार था। भाषा के जितने विविध रूप  इनकी रचनाओं में देखें जाते हैं उतने अन्यत्र कहीं नहीं देखे जाते। इनके पहले ही उपन्यास कुरू कुरू स्वाहा में भाषा की परिपक्वता देखकर लोग चौंक जाते हैं कि कोई अपने पहले ही उपन्यास में इतना परिपक्व कैसे हो सकता है ! इन्होंने कुमाउंनी भाषा का प्रयोग खूब किया है।कसप उपन्यास में इसका प्रयोग देखा जा सकता है। इन्होंने जहां जहां कुमाउंनी का प्रयोग किया है वहां कोष्ठक में उसका हिन्दी में अर्थ भी लिखा है । इससे भाषा का सहज ही विस्तार हो जाता है।इनके उपन्यास कुरू कुरू स्वाहा की भाषा बम्बईया है तो कसप की कुमाउंनी। हमजाद में उर्दू की बहुलता है तो प्रभू तुम कैसे किस्सागो में कन्नड़ शब्दों की भरमार है। इनकी भाषा कहीं संस्कृतनिष्ठ शब्दों वाली तो कहीं रोजमर्रे की बोलचाल वाली है। कहीं रसीली है तो कहीं चुभती व्यंग्यात्मक है।
       इन्होंने दिनमान और साप्ताहिक हिंदुस्तान पत्रों का संपादन भी किया। नेता जी कहिन , इस देश के यारों क्या कहना जोशी जी के प्रसिद्ध व्यंग्य है। लखनऊ मेरा लखनऊ , रघुवीर सहाय : रचनाओं के बहाने एक स्मरण , क्या हाल है चीन के इनके संस्मरणात्मक लेख है।
         विभिन्न विधाओं में लिखते हुए जोशी जी मूलतः लेखक ही थे। उनका मन सर्वाधिक साहित्य लेखन में ही रमा। आखिरी बार अस्पताल जाने से पहले तक जोशी जी लिखते रहे और एक पत्रिका के लिए अपना स्तम्भ लिखकर गये।वे लेखक की तरह जिएं और 30 मार्च 2006 ई. को लेखक की तरह ही इस दुनिया से सदा के लिए विदा हो गए।
      

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