गोपाल दास नीरज एक स्मृति

           साहित्यकार , शिक्षक एवं फिल्मी गीतकार गोपाल दास सक्सेना 'नीरज' का जन्म 4 जनवरी सन् 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम ब्रजकिशोर सक्सेना था।जब ये मात्र 6 वर्ष के थे तभी इनके पिता का देहांत हो गया था।सन् 1942 में इन्होंने एटा से हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद ये टाइपिस्ट का काम करने लगे।तथा साथ ही प्राइवेट रूप से इण्टरमीडिएट , बी ए , हिन्दी साहित्य से एम ए की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। कुछ समय तक ये मेरठ कालेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कार्य किये। परन्तु जल्द ही त्यागपत्र देकर वहां से अलीगढ़ आ गये और यहीं धर्मसमाज काॅलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये।
         ये कवि सम्मेलनों में कविता पाठ करते थे।जिसकी अपार लोकप्रियता के कारण इन्हें बम्बई के फ़िल्म जगत ने गीतकार के रूप में  "नई उमर की नई फसल " के गीत लिखने का निमंत्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फिल्म में उनका लिखा गीत  "कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे" और " देखती रहो आज दर्पण न तुम ,प्यार का यह मुहूरत निकल जाएगा " बहुत लोकप्रिय हुए। जिसके परिणामस्वरूप वे वहीं रहकर फ़िल्मों के गीत लिखने लगे। इन्होंने" मेरा नाम जोकर" , "शर्मीली "और "प्रेम पुजारी "जैसी अनेक चर्चित फ़िल्मों में कई वर्षों तक गीत लिखने का काम किया। कुछ वर्षों बाद ये पुनः बम्बई छोड़ कर अलीगढ़ आ गए।
       इन्हें भारत सरकार ने सन् 1991 में पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया। इन्हें विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार , यश भारती एवं एक लाख रूपए का पुरस्कार सन् 1994 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा प्राप्त हुआ। पुनः भारत सरकार ने इन्हें सन् 2007 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया।
फ़िल्म जगत में भी सर्वश्रेष्ठ गीत लिखने के लिए सन् 1970 में फ़िल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। 19 जुलाई 2018 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में इनकी मृत्यु हो गई।
  काव्य कृतियां: संघर्ष ,अन्तर्ध्वनि  ,विभावरी। ,प्राणगीत, दर्द दिया है , बादर बरस गयो ,मुक्तकी ,दो गीत , नीरज की पाती , गीत भी अगीत भी , असावरी , नदी किनारे ,लहर पुकारे , कारवां गुज़र गया , फिर दीप जलेगा , तुम्हारे लिए नीरज की गीतिकाएं।
       इनका बचपन बहुत ही संघर्ष भरा रहा है। उन्होंने जीवन में काफी उतार चढ़ाव देखे।जिसे उनके गीतों में गहराई से महसूस किया जा सकता है। उनके गीतों में जिंदगी से जुड़ा संघर्ष झलकता है। धीरे धीरे फ़िल्म जगत में इनके गीतों की धूम मच गई।
नीरज के कुछ सदाबहार गीत :
* कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे।
* लिखे जो ख़त तुझे जो तेरी याद में।
* ए भाई जरा देख के चलो आगे ही नहीं पीछे भी।
* रंगीला रे तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन।
* शोख़ियों में घोला जाये फूलों का शबाब।
* खिलते हैं गुल यहां खिलके बिखरने को।
* आज मदहोश हुआ जाए ये मेरा मन।
* ओ मेरी ओर मेरी ओर मेरी शर्मीली।
* मेघा छाए आंधी रात बैरन बन गयी निंदिया।
* चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है।
* दिल आज शायर है।
* धीरे से जाना बगियन में।
     नीरज ने अपने जीवन को दर्शाती हुई कुछ पंक्तियां लिखी है जो आज भी लोगों को उनकी याद दिलाती है- 
"आंसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा
जहां प्रेम की चर्चा होगी मेरा नाम लिया जाएगा
गीत जब मर जाएंगे फिर क्या यहां रह जाएगा
एक सिसकता आंसुओ का कारवां रह जाएगा।"

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्रयोगवाद और अज्ञेय

सूरदास की भक्ति भावना

आचार्य रामचंद्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना