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कामायनी महाकाव्य का कथानक

       कामायनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य है। जिसका प्रकाशन  सन् 1935 ई. में हुआ था।यह हिन्दी साहित्य का अपूर्व महाकाव्य है। इसके कथानक का सूत्र ऋग्वेद , पुराणों तथा ब्राह्मण ग्रंथों में पाया जाता है।इस महाकाव्य में देव सृष्टि के विनाश के पश्चात मनु का प्रकृति पर विजय पाना , इड़ा के सहयोग से नागरिक सभ्यता को विकसित करना , जीवन संघर्ष के पश्चात् आनन्द का साक्षात्कार करना और आनन्द प्राप्त करने का वर्णन किया गया है।इस महाकाव्य में 15 सर्ग है।सर्गो के नाम इस प्रकार है- चिंता , आशा ,श्रद्धा , काम ,लज्जा ,वासना , कर्म , ईर्ष्या , इड़ा , स्वप्न , संघर्ष , निर्वेद , दर्शन , रहस्य , आनन्द। इस महाकाव्य के नायक मनु हैं और मानव उनकी संतान।             कामायनी महाकाव्य का प्रारम्भ जल प्लावन की घटना से होता है। जिसमें समस्त देव संस्कृति नष्ट हो जाती है। और वहां केवल मनु ही बचते हैं।जलप्लावन को देखकर मनु चिंतित हो जाते हैं कि अब भविष्य में सृष्टि का नवनिर्माण कैसे होगा। बाढ़ समाप्त होने पर प्रकृति का निखरा हुआ रूप मनु के सामने आता है और मनु के हृदय में भविष्य के प्रति आशा का संचार होता है।