कुकुरमुत्ता: पूंजीवादी सभ्यता पर करारा व्यंग्य
कुकुरमुत्ता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी द्वारा लिखी गई पूंजीवादी सभ्यता पर करारा व्यंग्य करती हुई एक लम्बी कविता है।यह कविता पहली बार 'हंस' मासिक पत्रिका के मई 1941 के अंक में प्रकाशित हुई थी।यह निराला जी की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है।यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर प्रहार करती हुई एक साथ प्रगतिवादी और प्रयोगवादी दोनों काल की विशेषताओं से युक्त कविता है। कुकुरमुत्ता के संबंध में आचार्य नंददुलारे बाजपेई जी कहते हैं कि - " कुकुरमुत्ता में विनोद की सृष्टि अतिरंजित वर्णनों द्वारा की गई है।यत्र तत्र यथार्थ वादी चित्रण की प्रवृत्ति भी दिखाई देती है।"
इस कविता में गुलाब अभिजात्य वर्ग का प्रतीक है और कुकुरमुत्ता सर्वहारा वर्ग का प्रतीक है। नवाब ने फारस से गुलाब मंगवाया था।और अपनी बाड़ी में अन्य देशी पौधों के साथ उसे उगवाया था।बेला , चमेली , कामिनी , जूही , नरगिस , रात की रानी , कमलिनी , गुलमेंहदी आदि फूलों की क्यारियां सजी हुई थी। यहीं पर फारस से मंगवाया हुआ गुलाब भी खिला था और अपनी सुन्दरता पर इतरा रहा था।उधर ही नाले के पास एक कुकुरमुत्ता भी उग आया था। और वहीं अकड़े हुए खड़ा था। गुलाब को देखकर कुकुरमुत्ता उसे संबोधित करते हुए कहता है कि -
अबे सुन बे गुलाब
भूल मत गर पायी खूशबू रंग ओ अब
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
डाल पर इतरा रहा है कैपिटलिस्ट
कितनों को तूने बनाया गुलाम
माली कर रखा सहारा जाड़ा घाम
कुकुरमुत्ता द्वारा गुलाब पर किया गया व्यंग्य उस उच्चवर्गीय समाज पर किया गया है जिनके उच्चता का महल दूसरों के शोषण पर ही टिका हुआ है।और फिर भी वो लोग शोषित वर्ग को उपेक्षा और तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं। शोषक वर्ग पर तीखा प्रहार करते हुए निराला जी कुकुरमुत्ता के माध्यम से कहते हैं कि -
घड़ों पड़ता रहा पानी
तू हरामी खानदानी
चाहिए सदा तुझको मेहरुन्निसा
जो निकाले इत्र रू ऐसी दिशा
इसी तरह गुलाब को अनेक प्रकार से धिक्कारने के बाद कुकुरमुत्ता अपनी प्रशंसा करता हुआ कहता है कि -
देख मुझको मैं बढ़ा
डेढ़ बलिश्त और ऊंचा पर चढ़ा
अपने से ही उगा मैं
बिन दाने का चुगा मैं
* * * *
चीन में मेरी नकल छाता बना
छत्र भारत में वहीं कैसा तना
सब जगह तू देख ले
आज का फिर रूप पैराशूट ले
इतना ही नहीं कुकुरमुत्ता ने अपनी प्रशंसा में अपने को विभिन्न वाद्य यंत्रों , भौतिक वादी सभ्यता का मेरुदंड , विष्णु का सुदर्शन चक्र , सूरज , चन्द्रमा , विभिन्न प्रकार के नृत्यों में , मन्दिरों में , गुम्बदों में और न जाने कहां कहां प्रतिष्ठित किया।जो उसके चरम आत्म गौरव को दर्शाता है।
इधर मालिन की लड़कियां बाग घूमने जाती है और कुकुरमुत्ता को देखकर खुश हो जाती है। वो कुकुरमुत्ता का कबाब बनाती है जो नवाब साहब को बहुत पसन्द आता है। नवाब साहब तुरन्त आदेश देते हैं कि और कुकुरमुत्ता लाकर कबाब बनाया जाय । माली ने हाथ जोड़कर कहा हुजूर बाग में अब केवल गुलाब है । कुकुरमुत्ता खत्म हो गया है। नवाब ने गुस्से से कहा। तो गुलाब की जगह कुकुरमुत्ता उगाओ।माली फिर हाथ जोड़कर कहता है , हुजूर कुकुरमुत्ता उगाया नहीं जाता यह तो खुद ही उगता है।
दुनिया भर में गुलाब सबसे सुंदर माना जाता है। लेकिन यह कुकुरमुत्ता गुलाब को मुंह चिढ़ाता हुआ अपनी ही प्रशंसा के गीत गा रहा है। निराला जी कुकुरमुत्ता के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि अभिजात्य वर्ग उच्चता के शिखर पर अपने से नहीं पहुंचा है। वहां तक पहुंचने में उसे निम्न वर्ग का सहारा लेना पड़ा है।यदि निम्न वर्ग के लोग उन्हें सहारा न देते तो उनका अस्तित्व कब का समाप्त हो जाता। कुकुरमुत्ता द्वारा अपनी प्रशंसा किए जाने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति कितना भी निम्न क्यों न हो उसका अपना महत्व होता है , अपनी एक विशेषता होती है जो दूसरों से उसे अलग करती है । बस उस व्यक्ति को अपना महत्व पता होना चाहिए फिर वो भी कुकुरमुत्ते की तरह गर्वित होकर जी सकता है।अंततः नवाब द्वारा कुकुरमुत्ता के महत्व को स्वीकार कर गुलाब की जगह कुकुरमुत्ता उगाने का आदेश इस बात को साबित कर देता है।
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