आंँखों से बहते अश्रुकण
बिन बोले सब कुछ कह जाते
मिट जाते हिय के शूल सब
संताप अश्रु संग बह जाते
वेदना की तीव्रतम धारा में
मन मैल सभी के धुल जाते
खिल जाते प्रेम के पुष्पकण
मन बगिया व्याकुल महकाते
अलौकिक अपनी आभा से
जीवन का नव पथ दिखलाते
हिन्दी साहित्य में प्रयोग वाद का प्रारम्भ सन् 1943 ई. में अज्ञेय द्वारा सम्पादित तार सप्तक के प्रकाशन के साथ माना जाता है। वास्तव में इसका प्रारंभ छायावाद में न...
सूरदास के काव्य में निहित भक्ति का स्वरूप (स्रोतः इन्टरनेट) हिन्दी साहित्याकाश में सगुणोपासक कृष्ण भक्त कवियों की परम्परा में सूरदास का स्थान अनन्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में- ‘‘जिस प्रकार रामचरित का गान करने वाले कवियों में गोस्वामी तुलसीदास जी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है, उसी प्रकार कृष्ण चरित गाने वाले भक्त कवियों में महात्मा सूरदास का। वास्तव में ये हिन्दी काव्य गगन के सूर्य और चन्द्र हैं। जो तन्मयता इन दोनों भक्त शिरोमणि कवियों की वाणी में पायी जाती है वह अन्य कवियों में कहाँ? हिन्दी काव्य इन्हीं के प्रभाव से अमर हुआ, इन्हीं की सरसता से उसका स्रोत सूखने न पाया। सूर की स्तुति में एक संस्कृत श्लोक के भाव को लेकर यह दोहा कहा गया है कि- ‘‘उत्तम पद कवि गंग के, कविता को बलवीर। केशव अर्थ गंभीर को, सूर तीन गुन धीर ।।’’ इसी प्रकार सूरदास की प्रशस्ति में किसी कवि ने यह...
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक , साहित्य इतिहासकार एवं निबंध कार थे। इन्होंने अपने आलोचना ग्रंथों से आलोचना का एक नया मार्ग प्रशस्त किया...
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