पिता का प्यार
"पापा पापा !मेरा रिजल्ट आ गया।मैं पास हो गया।" सुरेश ने चहकते हुए कहा।इतने में रसोईघर से मम्मी भी कमरे में आ गई और खुश होते हुए बोली -"अरे सच में बेटा!देखो जी मैं न कहती थी कि मेरा बेटा पास हो जाएगा।आप तो नाहक ही उसे डांटते रहते थे।"
"मैं क्या उसका दुश्मन थोड़े ही हूं।बस दोस्तों के साथ घूमते फिरते गलत संगत में न पड़ जाए इसीलिए डांटता था। चलो पास हो गये बहुत अच्छा है।अब मेरे साथ दुकान में हाथ बंटाना।" पापा ने कहा।
"क्यूं पापा मुझे अभी आगे कालेज जाकर पढ़ाई करनी है।" सुरेश ने उत्सुकता से कहा।
पापा थोड़ा गम्भीर होकर बोले- "नहीं बेटा !तुम्हारे कालेज की फीस मैं नहीं भर पाऊंगा।"
"अरे ये क्या बोल रहे हो एक ही तो बेटा है हमारा।उसकी भी फीस तुम्हें भारी पड़ रही है।" मां ने तमतमाते हुए कहा।
"देखो मेरी कमाई से गृहस्थी ही चल जाए यही बहुत है। कालेज की मोटी फीस मैं कहां से भर पाऊंगा।" पिता जी ने लाचारी दिखाई। तीनों में इस बात को लेकर काफी बहस हुई।
"अगर तुम्हें आगे पढ़ना ही है तो नीचे जो दुकान बंद पड़ी है उसे ही खोल लो जो कमाई हो उसे रख लेना। उससे अपनी फीस और बाकी के खर्चे देख लेना"।यह कहते हुए पिता जी ने अपना निर्णय सुना दिया। मां बेटे का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। सुरेश ने भी निर्णय कर लिया कि मैं भी अब एक पैसा नहीं मांगूंगा।अगले ही दिन से उसने दुकान का काम शुरू कर दिया और अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जोड़ने शुरू कर दिए। पिता जी यह सब देखकर दूर से ही मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। उनके इकलौते बेटे के खाली समय का सदुपयोग जो हो रहा था।
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