जयशंकर प्रसाद और उनका काव्य संसार
जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक कवि थे।इनका जन्म सन् 1889 में काशी के सुंघनी साहू परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद खत्री था। बचपन में ही इन्होंने पहले माता फिर पिता और 17 साल की आयु में बड़े भाई के मृत्यु का दुःख झेला है। जिससे इनकी स्कूली शिक्षा छूट गई। परन्तु इन्होंने स्वाध्याय से ही हिन्दी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया।इसी बीच इनकी एक के बाद दूसरी पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया। जीवन की इन दुखद घटनाओं की गूंज इनकी कविता में भी सुनी जा सकती है । जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों को झेलते हुए भी इन्होंने उच्च कोटि का ज्ञान प्राप्त किया।और हिन्दी साहित्य को अपने ज्ञान के भंडार से समृद्ध किया। इन्होंने गीतिकाव्य , खण्डकाव्य और महाकाव्य की रचना की।कानन कुसुम , झरना और लहर इनका गीति काव्य है।प्रेमपथिक , महाराणा का महत्व और आंसू खण्ड काव्य है तथा कामायनी महाकाव्य है।
जयशंकर प्रसाद जी जब नौ वर्ष के थे तभी इन्होंने अपने गुरु रसमय सिद्ध को 'कलाधर ' उपनाम से ब्रजभाषा में एक सवैया लिखकर अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया था। आगे चलकर 1906 ई. में 'भारतेन्दु ' पत्रिका में इनकी पहली कविता ' सावन पंचक ' कलाधर उपनाम से प्रकाशित हुई। प्रारंभ में प्रसाद जी ब्रजभाषा में लिखते थे।चित्राधार इनका प्रथम काव्य संग्रह है। परन्तु इसके प्रथम संस्करण का प्रकाशन सन् 1918 ई. में हुआ था। पहले यह ब्रजभाषा में लिखी गई थी। बाद में सन् 1928 ई. में इसका दूसरा संस्करण खड़ी बोली में प्रकाशित हुआ । इसमें अयोध्या का उद्धार , वनमिलन और प्रेमराज्य तीन लम्बी कविताएं है। जिन्हें काव्य कथाएं कहते हैं। अयोध्या का उद्धार में लव द्वारा अयोध्या को पुनः बसाने की कथा है। इसका आधार कालिदास के रघु वंश महाकाव्य का 16वाँ सर्ग है। वनमिलन कालिदास की अभिज्ञान शाकुन्तलम् पर आधारित है। इसमें शकुंतला के चले जाने के बाद उसकी दोनों सखियों अनुसूया और प्रियंवदा का क्या होता है , इसका वर्णन किया गया है। यह रोला छंद में रचित ब्रजभाषा का काव्य है।प्रेमराज्य की कथा ऐतिहासिक है। इसमें 1564 ई. में विजयनगर और अहमदाबाद के बीच तालीकोट के युद्ध प्रसंग एवं प्रेमराज्य के शासक चंद्रकेतु के प्रेमपूर्ण संदेश का भीलों पर पड़े प्रभाव का निरुपण है। करुणालय हिन्दी का प्रथम गीतिनाट्य है। इसमें प्रसाद जी ने यज्ञ में होने वाली क्रूर क्रियाओं की निंदा की है। उसे घृणित बताते हुए मनुष्य का वास्तविक धर्म मानवता बताया है।
इनकी प्रथम पुस्तकाकार रचना सन् 1909 में प्रकाशित उर्वशी है।यह गद्य पद्य मिश्रित एक चम्पू काव्य है। इसे कामायनी की श्रद्धा का पूर्व संस्करण कहा जाता है। कानन कुसुम (1913) को प्रसाद जी की खड़ी बोली की कविताओं का प्रथम संग्रह कहा जाता है । इसके प्रथम संस्करण (1913) में ब्रजभाषा एवं खड़ी बोली दोनों की कविताएं थी। परन्तु बाद में इसका द्वितीय संस्करण (1918) में एवं तृतीय संस्करण (1929) में प्रकाशित हुआ जिसमें केवल खड़ी बोली की ही रचनाएं रखी गयी। कानन कुसुम काव्य संग्रह ऐतिहासिक और पौराणिक कविताओं के साथ विनय , प्रकृति , प्रेम तथा सामाजिक भावनाओं पर आधारित कविताओं का संग्रह है।इस काव्य संग्रह में अनुभूति और अभिव्यक्ति की नई दिशाएं परिलक्षित होती हैं।
1914 ई. में प्रकाशित प्रेमपथिक काव्य संग्रह को कामायनी की पूर्वपीठिका माना जाता है। इसमें प्रेमी प्रेमिका पथिक तथा आश्रयदाता की कहानी वर्णित है।यह रचना भी पहले ब्रजभाषा में ही लिखी गई थी। परन्तु बाद में इसे खड़ी बोली में परिवर्तित कर दिया गया।प्रेमपथिक पर अंग्रेजी कवि गोल्ड स्मिथ की ' द हरमिट ' कविता का प्रभाव है।
प्रसाद जी के 1918 ई. में प्रकाशित काव्य संग्रह ' झरना ' से छायावाद का प्रारम्भ माना जाता है। झरना (1933) ,आंसू (1925) लहर (1933) और कामायनी (1935) इनके छायावादी काव्य संग्रह है ।इनकी प्रथम छायावादी कविता ' प्रथम प्रभात ' इसी झरना काव्य संग्रह में संकलित हैं।झरना प्रसाद की 1914 - 1917 के बीच रचित कविताओं का संकलन है। जिसमें प्रसाद जी का व्यक्तित्व प्रथम बार मुखरित हुआ है। इसे छायावाद की प्रथम प्रयोगशाला कहा जाता है। इसमें प्रकृति और प्रेम विषयक कविताएं हैं । इसके द्वितीय संस्करण (1927) में 31 नयी कविताएं और जोड़ दी गई है। आंसू (1925) प्रसाद जी की विशिष्ट रचना है।यह श्रेष्ठ विरह एवं गीति काव्य है ।इसका मूल स्वर प्रेमानुभूति एवं विषाद का स्वर है।इसकी रचना 133 छंदों में हुई है।यह विरह प्रधान स्मृति काव्य है।इनके जीवन की दुखद स्मृति आंसू में आकर छलक उठी है। इसे हिन्दी का मेघदूत कहा जाता है।
लहर (1933) में प्रसाद जी की सर्वोत्तम कविताएं अशोक की चिंता , शेर सिंह का शस्त्र समर्पण , पेशोला की प्रतिध्वनि और प्रलय की छाया संकलित हैं। अशोक की चिंता में कलिंग विजय के बाद सम्राट अशोक की पश्चाताप पूर्ण मन: स्थितियों का चित्रण है।प्रलय की छाया गुजरात के राजा कर्ण की रानी कमलावती के मानसिक द्वंद्व का चित्रण है। शेर सिंह का शस्त्र समर्पण और पेशोला की प्रतिध्वनि राष्ट्र प्रेम से संबंधित कविताएं हैं।
1935 में रचित कामायनी प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य है। इसमें आदिमानव मनु की कथा के साथ साथ युगीन समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। इसमें 15 सर्ग है । चिंता , आशा , श्रद्धा , काम ,वासना , लज्जा , कर्म , ईर्ष्या , इड़ा , स्वप्न , संघर्ष , निर्वेद , दर्शन , रहस्य , आनंद। कामायनी में मनु मन का ,श्रद्धा हृदय का इड़ा बुद्धि का कुमार मानव का प्रतीक है। इसका मुख्य छंद तोटक है। और प्रधान अंगी रस शान्त रस है । इसका दर्शन समरसता आनन्द वाद है। यह भारतीय आनन्द वाद का साकार रूप है। कामायनी की प्रधान पात्रा श्रद्धा काम की पुत्री है इसलिए श्रद्धा को कामायनी कहा गया है। इसकी कथा का आधार ऋग्वेद , छांदोग्य उपनिषद शतपथ ब्राह्मण तथा श्रीमद्भागवत है।
जयशंकर प्रसाद जी ने जीवन में अनेक दुखद घटनाओं और कठिन परिस्थितियों का सामना किया फिर भी उन्होंने स्वाध्याय से जो ज्ञान अर्जित किया उन सबके परिणामस्वरूप उनका काव्य संसार अत्यंत समृद्ध रहा है। उनके किव्य की अनुभूति अत्यंत स्वाभाविक है।उनका विलक्षण व्यक्तित्व उनके काव्य में सर्वत्र परिलक्षित होता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें