रोम रोम में रमने वाले राम

    राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है,
कोई कवि बन जाय, सहज सम्भाव्य है।

राम सिर्फ एक नाम नहीं हैं। राम हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत हैं । राम हिन्दुओं की एकता और अखंडता का प्रतीक हैं। मर्यादास्वरूप श्री राम का जीवनचरित भारतीय संस्कृति में परम आदरणीय एवं अनुकरणीय है। राम का जीवन वर्तमान संदर्भ में नैतिकता का संदेश है। रामकथा हर रूप में राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित करता है। राम का आदर्श मानव स्वरूप मनुष्यों के कर्तव्यों को रेखांकित करता है। राम कथा के अनेक प्रसंगों में जीवन के मोती छिपे हुए हैं। जो जीवन की कठिन परिस्थितियों में मार्गदर्शक का काम करते है और भटके हुए को राह दिखाते है। 

  इन्हीं गुणों के कारण राम कथा युगों युगों से भारतीय जनमानस पर अपना अमिट छाप छोड़े हुए है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक राम कथा कवियों की वाणी बनी हुई है। गोस्वामी तुलसीदास का रामचरित मानस प्रायः हर घरों में मिल जाता है और श्रद्धापूर्वक पढ़ा जाता है।
      वर्तमान समय में जब समाज नैतिकता खोकर दिशाहीन हो रहा है तब रामकथा अंधेरे में रोशनी की किरण के समान जनमानस को प्रकाशित कर हमेशा से मार्गदर्शक का काम कर रहा है और आज के समय में भी उसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। विभिन्न कवियों ने अपने काव्य में राम के चरित का गुणगान किया है। राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त इनके परम भक्त थे। उन्होंने अपने साकेत महाकाव्य में राम के उज्ज्वल चरित का जो वर्णन किया है वो परम आराध्य एवं अनुकरणीय है। उन्होंने राम के चरित्र को ही कवि बनने का मूलाधार बताया हैं- 

"राम तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है। 
कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है। "

राम कथा में सत्य से बढ़कर दूसरा कोई अन्य धर्म नहीं बताया गया है। सभी पुण्यों का मूल कारण मात्र सत्य ही है। दूसरे के परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं। भेदभाव, अन्याय असत्य का विरोध करने के कारण ही राम भारत के कण-कण में रचे-बसे हैं। सद्गुणों के कारण वह नरोत्तम हैं। अनेक कष्ट उठाते हुए श्रीराम शील, प्रेम, नैतिकता, करुणा और क्षमा के प्रतिमान हैं। 

मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित साकेत महाकाव्य में अपने जीवन का उद्देश्य श्री राम इस प्रकार स्पष्ट करते है , जो मनुष्य जीवन के लिए परम आदर्श है-



हाँ, इसी भाव से भरा यहाँ आया मैं,
कुछ देने ही के लिये प्रिये, लाया मैं।
निज रक्षा का अधिकार रहे जन जन को,
सबकी सुविधा का भार किन्तु शासन को।
मैं आर्यों का आदर्श बताने आया,
जन-सम्मुख धन को तुच्छ जताने आया।
सुख-शान्ति-हेतु मैं क्रान्ति मचाने आया,
विश्वासी का विश्वास बचाने आया।
मैं आया उनके हेतु कि जो तापित हैं,
जो विवश, विकल, बल-हीन, दीन, शापित हैं।
हो जायँ अभय वे जिन्हें कि भय भासित हैं,
जो कौणप-कुल से मूक-सदृश शासित हैं।
मैं आया, जिसमें बनी रहै मर्यादा,
बच जाय प्रलय से, मिटै न जीवन सादा;
सुख देने आया, दुःख झेलने आया;
मैं मनुष्यत्व का नाट्य खेलने आया।
मैं यहाँ एक अवलम्ब छोड़ने आया,
गढ़ने आया हूँ, नहीं तोड़ने आया।
मैं यहाँ जोड़ने नहीं, बाँटने आया,
जगदुपवन के झंखाड़ छाँटने आया।

मैं राज्य भोगने नहीं, भुगाने आया,
हंसों को मुक्ता-मुक्ति चुगाने आया।
भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया,
नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया!
सन्देश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।
अथवा आकर्षण पुण्यभूमि का ऐसा
अवतरित हुआ मैं, आप उच्च फल जैसा।
जो नाम मात्र ही स्मरण मदीय करेंगे,
वे भी भवसागर बिना प्रयास तरेंगे।
पर जो मेरा गुण, कर्म, स्वभाव धरेंगे,
वे औरों को भी तार पार उतरेंगे।"

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