" सवा सेर गेहूं " कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई यथार्थ घटना पर आधारित कहानी है।इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने उस समय की सामाजिक दशा का यथार्थ चित्रण किया है। प्रेमचंद जी ने इस कहानी के माध्यम से एक शोषित वंचित किसान की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है।यह शंकर नामक एक सीधे सादे , भोले भाले किसान की कहानी है। जिसे धोखे से कर्ज के जाल में फंसा दिया जाता है। शंकर एक गरीब किसान है। उसने कभी किसी का बुरा नहीं किया। खुद तो रूखा सूखा जो होता खा लेता। नहीं होता तो पानी पी के सो रहता । परन्तु यदि द्वार पर कोई साधु महात्मा आ जाते तो उन्हें उनकी मर्यादा के अनुसार भरपेट भोजन कराता। कभी कोई उसके द्वार से खाली नहीं लौटा। लेकिन फिर भी नियति ने उसे नहीं बख्शा।एक दिन उसके द्वार पर एक साधु महात्मा आएं। उनके भोजन के लिए उसने गांव के विप्र महाराज से सवा सेर गेहूं उधार लिया। साधु महाराज तो भरपेट भोजन करके और आशीर्वाद देकर चले गये। लेकिन शंकर के सिर गेहूं का कर्ज चढ़ा गये। यह कर्ज ही शंकर के गले का फांस बन गया । शंकर विप्र महाराज को हर साल खलिहानी देते समय सेर दो सेर अनाज...