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कफ़न : सामाजिक विद्रूपता की कहानी

         कफ़न कथाक ार मु ंशी प्रेमचंद की सर्वश्र ेष्ठ कहानियों में से एक है , जिसका प्रकाशन चाँद पत्रिका के अप्रैल 1936 के अंक में हुआ था। सामाजिक विद्रूपता को दर्शाती यह कहानी ...

तोड़ती पत्थर : निराला जी की प्रगतिवादी कविता

        तोड़ती पत्थर कविता हिन्दी काव्य जगत के मूर्धन्य कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की सन् 1935 ई. में लिखी गई एक प्रगतिवादी कविता है। यद्यपि निराला जी छायावाद के प्रतिनिध...

जयशंकर प्रसाद और उनका काव्य संसार

      जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक कवि थे।इनका जन्म सन् 1889 में काशी के सुंघनी साहू परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद खत्री था। बचपन में ही इन्होंने पहले म...

सवा सेर गेहूं: कभी न चुकने वाले कर्ज की गाथा

" सवा सेर गेहूं " कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई यथार्थ घटना पर आधारित कहानी है।इस कहानी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने उस समय की सामाजिक दशा का यथार्थ चित्रण किया है। प्रेमचंद जी ने इस कहानी के माध्यम से एक शोषित वंचित किसान की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है।यह शंकर नामक एक सीधे सादे , भोले भाले किसान की कहानी है। जिसे धोखे से कर्ज के जाल में फंसा दिया जाता है। शंकर एक गरीब किसान है। उसने कभी किसी का बुरा नहीं किया। खुद तो रूखा सूखा जो होता खा लेता। नहीं होता तो पानी पी के सो रहता । परन्तु यदि द्वार पर कोई साधु महात्मा आ जाते तो उन्हें उनकी मर्यादा के अनुसार भरपेट भोजन कराता। कभी कोई उसके द्वार से खाली नहीं लौटा। लेकिन फिर भी नियति ने उसे नहीं बख्शा।एक दिन उसके द्वार पर एक साधु महात्मा आएं। उनके भोजन के लिए उसने गांव के विप्र महाराज से सवा सेर गेहूं उधार लिया। साधु महाराज तो भरपेट भोजन करके और आशीर्वाद देकर चले गये। लेकिन शंकर के सिर गेहूं का कर्ज चढ़ा गये। यह कर्ज ही शंकर के गले का फांस बन गया । शंकर विप्र महाराज को हर साल खलिहानी देते समय सेर दो सेर अनाज...